मैला आँचल : गांव, गाँधी और ग्लोबलाइजेशन

रेणु के बाल, कंधे पर फैले हुए जिसे अपने यहाँ झोंटा बोलते हैं, झोंटा बढाए हुए । और इस रूप में मैंने पहली बार और अन्तिम बार कहिए वहीं रेणु को देखा था, घर पर । सेवक था मैं, अपने बड़े भाई का । चाय लाओ, नमकीन लाओ, ये लाओ, वो लाओ, मैं लाया करता और इसी बहाने देख भी लिया करता था कि कौन आदमी कैसा है, क्या है ।

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