लोगों के पास पीने का साफ पानी, या शौचालय, या खाना, या पैसा नहीं है मगर उनके पास चुनाव कार्ड या यूआइडी नंबर होंगे। क्या यह संयोग है कि इनफोसिस के पूर्व सीईओ नंदन नीलकेणी द्वारा चलाया जा रहा यूआइडी प्रोजेक्ट, जिसका प्रकट उद्देश्य ‘गरीबों को सेवाएं उपलब्ध करवाना’ है, आइटी उद्योग में बहुत ज्यादा पैसा लगाएगा जो आजकल कुछ परेशानी में है?
Continue ReadingMonth: November 2012
आलोचनात्मक सृजन : ‘सृजन का आलोक’
दरअसल ‘भारतीय मुस्लिम साहित्य’ कहने से एक भ्रम का निर्माण होता है। क्योंकि विशेषतः भारत के इतिहास में मुस्लिम समाज एक साथ शासक भी रहा है और शोषित भी। यह दरार ऐतिहासिक प्रक्रिया में निर्मित हुई थी और अभी तक बनी है। जो आर्थिक रूप से सबल थे वह सत्ता के गलियारों में मुस्लिम नेता के रूप में बने रहने में कामयाब तो हुए किन्तु वह किसी भी प्रकार से आम भारतीय मुस्लिम समुदाय का नेतृत्व न कर रहे हैं और न ही कभी किया है।
Continue Readingमध्ययुगीन भक्ति आन्दोलन का एक पहलू – मुक्तिबोध
मेरे मन में बार-बार यह प्रश्न उठता है कि कबीर और निर्गुण पन्थ के अन्य कवि तथा दक्षिण के कुछ महाराष्ट्रीय सन्त तुलसीदास जी की अपेक्षा अधिक आधुनिक क्यों लगते हैं? क्या कारण है कि हिन्दी-क्षेत्र में जो सबसे अधिक धार्मिक रूप से कट्टर वर्ग है, उनमें भी तुलसीदासजी इतने लोकप्रिय हैं कि उनकी भावनाओं और वैचारिक अस्त्रों द्वारा, वह वर्ग आज भी आधुनिक दृष्टि और भावनाओं से संघर्ष करता रहता है?
Continue Readingकफन के दलित पाठ की उलझनें
बुधिया समेत सभी दलित स्त्रियों की उपेक्षा करने एवं शुचिता को स्त्री के जीवन से भी अधिक मूल्यवान मानने वाले पितृसत्तात्मक विमर्श को अधिक से अधिक ‘दलित पुरुष विमर्श’ कहा जा सकता है, जो सवर्ण पुरुष से मुक्ति की बात तो करता है, लेकिन ‘अपनी स्त्रियों’ पर वर्चस्व बनाए रखना चाहता है।
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