पुरुष वर्चस्व का पहला सबक

क्या होता अगर हव्वा ने जेनेसिस लिखी होती ! इंसानी सफर की पहली रात तब कैसी होती ! उसने किताब की शुरुआत ही यह बताते हुए की होती कि वह न तो किसी जानवर की हड्डी से पैदा हुई थी; न ही वह किसी सांप को जानती थी; उसने किसी को सेब भी नहीं दिए थे। ईश्वर ने उससे यह नहीं कह था कि बच्चा जनते समय उसे दर्द होगा और उसका पति उसपर हुकूमत करेगा। वह बताती कि यह सब तो सिर्फ़ झूठ और झूठ है जिसे आदम ने प्रेसवालों को बता ‘इतिहास’ और ‘सच’ का रूप दे दिया था।

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रंगभेद और पुरुष वर्चस्व का पहला सबक

स्पेन में ऐतिहासिक धार्मिक अदालतों के दौर में कोई भी सिर्फ अपनी नहाने की आदत भर से ही ईसाई धर्म के खिलाफ और इस्लामी तौर-तरीकों वाला मान लिया जा सकता था और इसीलिये जिंदा जला दिया जा सकता था। वास्तव में यूरोप में नहाना बहुत बाद में लोकप्रिय हुआ, लगभग उसी वक्त जब टी.वी. पहले-पहल लोकप्रिय हुआ।
रंगभेद और पुरुष वर्चस्व की पहली सीख

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लिखना मौत से लड़ने जैसा है

लेखक एक संस्कृति उद्योग के दिहाड़ी मजदूर हैं जो भद्र अभिजात वर्ग की उपभोक्तावादी जरूरतों को पूरा करते हैं, वे खुद इसी तबके से आते हैं और इसी के लिये लिखते हैं. यही लेखकों की नियति है कि उनका लिखना ले-देकर सामाजिक गैरबराबरी कायम रखने वाली विचारधारा द्वारा तय सीमा के भीतर ही होता है. साथ ही, हम जैसे लेखक जो इन हदों को तोड़ना चाहते हैं उनका भी यही हाल है.जब भी कोई लिखता है तो वह औरों के साथ कुछ बांटने की जरुरत ही पूरी कर रहा होता है.

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