बलात्कार – जर्मेन ग्रीयर

अगर शारीरिक हिंसा महिलाओं के लिये अत्यधिक भयावह नहीं होती, तो अधिकांश बलात्कार कभी होते ही नहीं। अगर आप किसी पुरुष का लिंग अपने शरीर में इसलिए प्रविष्ट होने देते हैं क्योंकि वह आपकी नाक काट देगा तो निश्चित तौर पर आप अपनी नाक का कटना कहीं अधिक बुरा मानते हैं; लेकिन मूर्खतापूर्ण कानून आपकी राय से इत्तेफाक नहीं रखता। आपकी नाक काटने की सजा बलात्कार की सजा से कम ही होगी, लेकिन तब आप पर यह संदेह नहीं किया जा सकेगा कि आप अपनी नाक काटे जाने पर सहमत थीं।

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‘बलात्कार संस्कृति’ के विरुद्ध – कविता कृष्णन

महिलाओं की सुरक्षा का शब्द काफी पिटा हुआ शब्द है। इस सुरक्षा का मतलब हम सब जानते हैं… सुरक्षा का मतलब है – अपने दायरे में रहो। घर की चारदीवारी में रहो, एक खास तरह के कपड़े पहनो। इसका मतलब कि आप अपनी आजादी से मत रहिए तब आप सुरक्षित रहिएगा। ढेर सारे पितृसत्तात्मक नियम-कानूनों को महिलाओं की सुरक्षा बनाकर परोसा जाता है। हम इस परोसी हुई थाली को पटक रहे हैं – हमें यह नहीं चाहिए।

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हम एक ‘रेप कल्चर’ में जी रहे हैं – कवितेन्द्र इन्दु

कहीं ऐसा तो नहीं कि दिल्ली की ‘जनता’ अपनी सुरक्षित हाइ-टेक सभ्यता के दिवास्वप्न में इस कदर डूबी रहती है कि उसे आस-पास उठने वाली चीखें सुनाई ही नहीं देतीं और जब उसकी नाक के ऐन नीचे ऐसा कुछ घटित होता है, जिससे इस दिवास्वप्न में बाधा पड़ती है तो वह बौखला उठती है! या फिर ऐसा है कि दिल्ली महिलाओं के प्रति बहुत संवेदनशील है और उसके खिलाफ रोज-ब-रोज होने वाले अपराधों से दिल्ली वालों के सब्र का बांध भर चुका है और इस विस्फोटक घटना ने उन्हें आन्दोलित करके सड़कों पर ला दिया है।

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