किसी गरीब तथा अनपढ़ परिवार, जैसे एक चमार या मेहतर के यहाँ पैदा होने पर इन्सान का भाग्य क्या होगा? चूँकि वह गरीब हैं, इसलिए पढ़ाई नहीं कर सकता. वह अपने उन साथियों से तिरस्कृत और त्यक्त रहता है जो ऊँची जाति में पैदा होने की वजह से अपने को उससे ऊँचा समझते हैं. उसका अज्ञान, उसकी गरीबी तथा उससे किया गया व्यवहार उसके हृदय को समाज के प्रति निष्ठुर बना देते हैं.
Continue ReadingMonth: September 2012
निर्वासन चिंतन – एडवर्ड सईद
कई साल पहले मुझे समकालीन उर्दू कविता के महानतम कवि फैज़ अहमद फैज़ के साथ कुछ समय बिताने का मौका मिला था। जियाउल हक की सैनिक सरकार ने उन्हें देश-निकाला दे दिया था और संकटों से जूझ रहे बेरूत में उन्होंने शरण ली थी। …फैज़ मेरी खातिर कविताओं का अनुवाद करते रहे लेकिन जैसे-जैसे रात गहराने लगी, अनुवाद की जरूरत ही नहीं रह गई। जो मैं देख रहा था, उसके अनुवाद की जरूरत नहीं थी
Continue Readingमैला आँचल : गांव, गाँधी और ग्लोबलाइजेशन
रेणु के बाल, कंधे पर फैले हुए जिसे अपने यहाँ झोंटा बोलते हैं, झोंटा बढाए हुए । और इस रूप में मैंने पहली बार और अन्तिम बार कहिए वहीं रेणु को देखा था, घर पर । सेवक था मैं, अपने बड़े भाई का । चाय लाओ, नमकीन लाओ, ये लाओ, वो लाओ, मैं लाया करता और इसी बहाने देख भी लिया करता था कि कौन आदमी कैसा है, क्या है ।
Continue Readingभारतेन्दु का बलिया व्याख्यान
जो बात हिन्दुओं को नहीं मयस्सर है वह धर्म के प्रभाव से मुसल्मानों को सहज प्राप्त है। उन में जाति नहीं, खाने पीने में चौका चूल्हा नहीं, विलायत जाने में रोक टोक नहीं। फिर भी बड़े ही सोच की बात है कि मुसल्मानों ने अभी तक अपनी दशा कुछ नहीं सुधारी। अभी तक बहुतों को यही ज्ञात है कि दिल्ली लखनऊ की बादशाहत कायम है। यारों वे दिन गए।
Continue Readingरंगभेद और पुरुष वर्चस्व का पहला सबक
स्पेन में ऐतिहासिक धार्मिक अदालतों के दौर में कोई भी सिर्फ अपनी नहाने की आदत भर से ही ईसाई धर्म के खिलाफ और इस्लामी तौर-तरीकों वाला मान लिया जा सकता था और इसीलिये जिंदा जला दिया जा सकता था। वास्तव में यूरोप में नहाना बहुत बाद में लोकप्रिय हुआ, लगभग उसी वक्त जब टी.वी. पहले-पहल लोकप्रिय हुआ।
रंगभेद और पुरुष वर्चस्व की पहली सीख